
हिसार टुडे।आचार्य जगदीश महाराज
बहुत बार हमने सुना होता है कि महात्मा या साधक साधना के लिए हिमालय जाते हैं। कहीं पर भी एकांत की बात नहीं कही गई जंगलों की बात भी नहीं कही गई। हिमालय की बात ज्यादा आती है हिमालय का मतलब है जहां पर बर्फ हो। हिमालय जाने का कारण क्या था। तो मालूम चला कि जब हम साधना करते हैं। चाहे वह साधना कोई सी भी हो कुंडलिनी जागरण की साधना हो। या ध्यान की साधना हो। परम ध्यान की गूढ़ ध्यान की साधना हो। साधना के समय हमारे अंदर एक विस्फोट होता है ।जो ऊर्जा का विस्फोट है। ऊर्जा बढ़नी आरम्भ होती है।
उस समय शरीर को जिस समय हम साधना में होते हैं। उस समय हमारे शरीर को कम तापमान की जरूरत हो
ती है। जिससे हमारा शरीर एडजस्ट कर सके। इस पर वैज्ञानिक खोज भी हो चुकी है अभी कुछ समय पहले कुछ जापान के वैज्ञानिक यहां आए और उन्होंने कुछ बौद्ध भिक्षु पर experiment किया! यह एक्सपेरिमेंट लेह लद्दाख में किया गया जहां का तापमान – 35 तक चला जाता है उस समय वहां का तापमान – 20 के आसपास था। बौद्ध भिक्षुओं को डीप मेडिटेशन में बिठाया गया और जब वह डीप मेडिटेशन में चले गए।
उस समय वहां कई देर से बहुत ठंडे पानी में बर्फ में रखा हुआ तौलिया को उनके सर पर रख दिया गया। अगर ऐसा किसी आम व्यक्ति के साथ किया जाए तो हो सकता है उसकी मृत्यु भी हो जाए। लेकिन जैसे ही बौद्ध भिक्षु के सर पर तौलिया रखा गया वैसे ही वो तौलिया थोड़ी ही देर में सूख गया। अर्थात शरीर से इतनी एनर्जी ऊर्जा निकल रही थी। इतनी गर्मी निकल रही थी कि वह तौलिया कुछ ही देर में सूख गया। वैज्ञानिक हैरान हुए और बात भी हैरानी की है।
जब साधना करने लगते है। ध्यान सक्रिय होता है। तो ऊर्जा भी बढ़नी आरम्भ होती है। चक्र भी सक्रिय होने आरम्भ होते है। साधना के लिए पहले पूरी जानकारी या गुरु का होना आवश्यक है। नहीं तो शरीर का नुकसान भी होने की संभावना रहती है। कुछ कारण और भी है योगियों के हिमालय जाने के।